उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में श्रम कानूनों में किए गए बदलावों को कठोर करार देते हुए केंद्रीय व्यापार संघों (सेंट्रल ट्रेड यूनियन) ने 22 मई को देशव्यापी प्रदर्शन करने का फैसला किया है. ट्रेड यूनियनों के नेता महात्मा गांधी के स्मारक राजघाट पर एक दिन का उपवास रखेंगे.
व्यापार संघ जिसमें कांग्रेस समर्थित INTUC, लेफ्ट का CITU और AITUC और कई अन्य संगठनों ने केंद्र सरकार पर ऐसे फैसले लेने का आरोप लगाया है जो मजदूर वर्ग के खिलाफ है. उनका कहना है कि सरकार ने ऐसे वक्त फैसला लिया है जब मजदूर पहले से ही कोरोना और लॉकडाउन के कारण गहरे संकट में हैं.
व्यापार संघों ने एक संयुक्त बयान में कहा कि 14 मई 2020 को आयोजित बैठक मे सेंट्रल ट्रेड यूनियनों के संयुक्त प्लेटफॉर्म ने लॉकडाउन के दौरान देश में मजदूरों की स्थिति पर संज्ञान लिया है और एकजुट होकर चुनौती से निपटने का फैसला लिया गया है.
बयान में आगे कहा गया कि इस संयुक्त प्लेटफॉर्म ने 22 मई 2020 को सरकार की मजदूर विरोधी और जन विरोधी नीतियों के खिलाफ देशव्यापी विरोध आयोजित करने का फैसला किया है. ट्रेड यूनियनों ने इस संबंध में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन को ज्वाइंट रिप्रजेंटेशन भेजने का भी फैसला किया है. उन्होंने कहा कि श्रम कानूनों का निलंबन मानवाधिकारों और श्रम मानकों पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन है.
गौरतलब है कि कोरोना वायरस की महामारी को फैलने से रोकने के लिए लागू किए लॉकडाउन के कारण ठप पड़ी उद्योग-धंधों की रफ्तार बढ़ाने के लिए कई प्रदेश सरकारों ने श्रम कानूनों को नरम बनाया है. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने श्रम कानूनों को 3 साल के लिए शिथिल कर दिया, वहीं मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने भी श्रम कानून में संशोधन कर कई बदलाव किए हैं. एमपी में कारखानों में काम करने की शिफ्ट अब 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे की कर दी गई है. गुजरात सरकार ने भी श्रम कानूनों में बदलाव किए हैं.