मोरा’टोरि’यम की अवधि के दौरान लोन की कि’स्तों पर ब्याज की व’सूली किए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को लंबी बहस चली। इस दौरान तीन सदस्यीय बेंच ने कहा कि मोरा’टोरि’यम और ब्या’ज एक साथ नहीं चल सकते। के’स की सु’नवाई करते हुए जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की मुख्य चिं’ता यह है कि उन्हें मो’राटो’रियम के तहत पर्याप्त राहत नहीं दी गई। इसके अलावा मदद के लिए डिजास्टर मैनेजमेंट ऐक्ट को भी लागू नहीं किया गया।
हालांकि अब भी सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर अं’तिम निर्णय नहीं दिया है और 10 तारीख को फिर से सुन’वाई किए जाने की बात कही है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने के’स की सुनवाई के दौरान कहा था कि ब्या’ज पर ब्या’ज लगाने का कोई तुक नहीं बनता है। के’स की सुनवाई जस्टिस अशोक भूषण, आर. सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की बेंच कर रही है।
सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनर तुषार मेहता ने कहा कि कोरो’ना का असर सभी पर देखने को मिल रहा है, लेकिन हर सेक्टर पर अलग-अलग है। खासतौर पर फार्मा और आईटी सेक्टर आदि ने कोरो’ना का’ल में ग्रोथ हासिल की है। उन्होंने कहा कि मोरा’टोरि’यम को लेकर यह विचार था कि इस दौरान बिजनेस के लिए वर्किंग कैपिटल को मैनेज किया जा सके। इसके पीछे ब्या’ज मा’फ करने का आइडिया नहीं था।
ऐसा इसलिए किया गया ताकि कोरो’ना काल में आर्थिक संक’ट से परे’शान लोगों को राहत मिल सके और जो डि’फॉल्टर हैं, वे इसका अन्यथा लाभ न ले सकें। सॉलिसिटर जनरल के इस तर्क पर जस्टिस आर. रेड्डी ने कहा कि मोराटो’रियम और ब्याज एक साथ नहीं चल सकते।
बता दें कि भारतीय रिजर्व बैंक ने पहले मार्च से लेकर मई तक के लिए लो’न मोराटोरियम का ऐलान किया था। इसके बाद इस अवधि को जून से लेकर अगस्त तक बढ़ाने का फैसला लिया गया था। हालांकि लोन मोराटो’रियम की 6 महीने की इस अवधि में भी क’र्ज पर ब्याज जारी थी। इसी पर याचिकाएं दा’खिल कर सुप्रीम कोर्ट से राहत की मां’ग की गई थी। याचि’काकर्ताओं का तर्क था कि मोरा’टोरियम के दौरान ब्याज की वसू’ली करना गल’त है और यह पूर्ण राहत नहीं है।