कोविड-19 काल के बीच नरेंद्र मोदी सरकार ने शनिवार को 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज की चौथी किस्त से जुड़े ऐलान किए।
केंद्र ने सुस्त अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के मकसद से कई बड़े सुधारों का ऐलान किया, जिनमें रक्षा विनिर्माण में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की सीमा में बढ़ोतरी, छह अन्य हवाई अड्डों का निजीकरण, नागर विमानन क्षेत्र के लिए और अधिक वायु क्षेत्र खोलना और कोयले के वाणिज्यिक खनन में निजी क्षेत्र को प्रवेश देने के कदम शामिल हैं।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि केंद्र शासित प्रदेशों में बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) का निजीकरण किया जायेगा। इससे दक्षता में सुधार और निवेश आकर्षित करने का ऐसा मॉडल सामने आने की उम्मीद है, जिसे बाद में अन्य राज्यों में दोहराया जा सकेगा।
इसी बीच, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े संगठन भारतीय मजदूर संघ (BMS) ने केंद्र के कदमों का कड़ा विरोध किया। बयान जारी कर कहा, “वित्त मंत्री की घोषणाओं का चौथा दिन, देश और देश के उन लोगों के लिए दुखद है, जो पहले तीन दिन के ऐलानों के बाद सातवें आसमान पर थे।
आठ सेक्टर्स (कोयला, मिनरल्स, डिफेंस प्रोडक्शन, एयरस्पेस मैनेजमेंट, एयरपोर्ट्स, पावर डिस्ट्रीब्यूशन, स्पेस और अटॉमिक एनर्जी) पर जोर दिया गया है, पर सरकार कह रही है कि उसके पास संकट की इस घड़ी में निजीकरण के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।”
बीएमएस ने दावा किया कि कर्मचारियों के लिए निजीकरण का मतलब है कि बड़े स्तर पर नौकरियों का जाना, कम गुणवत्ता वाली नौकरियां पैदा होंगी और सेक्टर्स में सिर्फ मुनाफा कमाना और लोगों का शोषण करना ही नियम बनकर रह जाएगा।
बिना किसी सोशल डायलॉग (जन संवाद) के सरकार बड़े स्तर पर बदलाव कर रही है और गलत दिशा में जा रही है। लोकतंत्र में सामाजिक संवाद बुनियादी चीज होती है। सरकार ट्रेड यूनियनों, सामाजिक प्रतिनिधियों और स्टेक होल्डर्स के साथ सलाह और बात करने में शर्माती है। और, ये चीजें सरकार के आत्मविश्वास में कमी को साफ दर्शाती हैं।
वहीं, देश के प्रमुख वामपंथी दलों ने आर्थिक पैकेज की चौथी किस्त को लेकर शनिवार को सरकार पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि सरकार कोविड-19 की महामारी का इस्तेमाल देश की सार्वजनिक संपत्तियों के निजीकरण के लिए कर रही है।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव सीताराम येचुरी ने ट्वीट किया, ‘‘लॉकडाउन और महामारी का इस्तेमाल पूंजीपतियों के एजेंडे को थोपने और मोटा मुनाफा कमाने के लिए करना अमानवीय है। राष्ट्रीय संपत्तियों को लूटने से आत्म निर्भरता खत्म हो जाती है।’’
उन्होंने कहा कि सरकार को बताना चाहिए कि उसने देश के स्वास्थ्य ढांचे में सुधार के लिए लॉकडाउन की अवधि का किस तरह से इस्तेमाल किया। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के महासचिव डी राजा ने आरोप लगाया कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जो घोषणाएं की, उनका मकसद सिर्फ और सिर्फ निजीकरण एवं निगमीकरण है।
उन्होंने कहा, ‘‘कोरोना संकट से निपटने में विफल रहने के बाद सरकार निजीकरण और निगमीकरण को प्रोत्साहन दे रही है। यह बहुत दुखद है। यह विडंबना है कि एक तरफ वे आत्मनिर्भर भारत की बात कर रहे हैं और दूसरी तरफ पूरी अर्थव्यवस्था को निजी हाथों में सौंप रहे हैं।’’
उधर, कांग्रेस ने भी इसे मुद्दा बनाया और कहा कि रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) सीमा का बढ़ाया जाना और आयुध कारखानों के ‘निजीकरण’ का प्रयास निंदनीय है क्योंकि ये विषय देश की सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़े हैं।
पार्टी प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने यह भी कहा कि सरकार एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह बताना चाहिए कि अब तक की घोषणाओं से देश के आम लोगों की जेब में कितना पैसा गया?
उन्होंने वीडियो लिंक के माध्यम से संवाददताओं से बातचीत में दावा किया, ‘‘निगमीकरण के नाम पर आयुध कारखानों का निजीकरण किया जा रहा है। आयुध कारखाने हमारी सामरिक संपत्ति हैं, इनके निजीकरण का हम कड़ा विरोध करते हैं।’’
वल्लभ ने कहा कि आयुध कारखानों का निजीकरण नहीं, बल्कि आधुनिकीकरण करने की जरूरत है। सरकार को इस आधुनिकीकरण के लिए नए निवेश और नयी प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल की घोषणा करनी चाहिए।