अमेरिकी राजनयिक से राहुल गांधी ने की बातचीत, अस’हिष्णुता पर किया ये सवाल

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी कोरोना और लॉकडाउन संकट के मद्देनजर स्पीक पीपुल्स अभियान के तहत आज अमेरिकी राजदूत रहे निकोलस बर्न्स से बातचीत की। दोनों नेताओं ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ये बातचीत की।

इस दौरान दुनिया में इस वक्त के माहौ’ल पर बात की। इस दौरान अश्वेत नागरिक, हि’न्दू-मुस्लिम, लोकतंत्र समेत कई मस’लों पर बात हुई। राहुल ने इस दौरान दोनों देशों में कोरोना की ल’ड़ाई, लॉकडाउन और फिर उसके असर पर बात की। बातचीत के दौरान राहुल गांधी ने अमेरिकी राजदूत रहे निकोलस बर्न्स ने अमेरिका में आंदोलन, चीन और रूस सहित कोरोना संकट के बारे में जानकारी लिया। इस दौरान राहुल गांधी ने कहा कि बं’टवारा या विभेद देश को  कमजो’र बनाता है।

राहुल गांधी ने कहा हम खुले विचारों वाले हैं, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि वो अब गायब हो रहा है। यह काफी दुःखद है कि मैं उस स्तर की सहि’ष्णुता को नहीं देखता, जो मैं पहले देखता था। ये दोनों ही देशों में नहीं दिख रही। राहुल ने आगे कहा कि ‘मुझे लगता है कि हम एक जैसे इसलिए हैं, क्योंकि हम सहिष्णु हैं। हम बहुत सहिष्णु राष्ट्र हैं। हमारा डीएनए सहनशील माना जाता है। हम नए विचारों को स्वीकार करने वाले हैं।’

निकोलस बर्न्स: अमेरिका में इस तरह की दिक्कतें हैं, अफ्रीकी-अमेरिकियों के साथ लंबे वक्त से ऐसा होता रहा है। अमेरिका में मार्टन लूथर किंग ने बड़ा काम किया है, उनके आदर्श भी महात्मा गांधी थे। अमेरिका ने बराक ओबामा जैसे नेता को राष्ट्रपति को चुना लेकिन आज क्या देखने को मिल रहा है। किसी का भी हक है, प्रदर्श’न करना लेकिन अमेरिका में राष्ट्रपति ब्लै’क लोगों को आ’तंक’वादी समझते हैं।

राहुल गांधी: भारत और अमेरिका दोनों ही सहि’ष्णु देश हैं, जो नए आइडिया को समझते हैं और किसी भी विचार की इज्जत करते हैं। लेकिन आज दोनों देशों में दिक्कत है।

निकोलस बर्न्स: आज अमेरिका के लगभग हर शहर में इस तरह का प्रदर्शन हो रहा है, जो लोकतंत्र के लिए मायने रखता है. अगर हमें चीन जैसे देश को देखते हैं, तो हम काफी बेहतर हैं। भारत में भी यही है वहां भी लोकतंत्र है और लंबे संघर्ष के बाद आजादी मिली है। हमें उम्मीद है कि अमेरिका का लोकतंत्र फिर मजबूत होगा।

राहुल गांधी: मुझे लगता है कि जो बं’टवारा दिख रहा है, वो देशों को कमजो’र करने वाला है। जब आप लोगों को जा’ति या ‘धर्म में बां’टते हो, तो देश को कमजोर कर रहे हो। जो लोग देश को कमजो’र कर रहे हैं, वही खुद को राष्ट्र’वादी कहते हैं।

निकोलस बर्न्स: मुझे लगता है कि डोनाल्ड ट्रंप बिल्कुल ऐसे ही हैं वो सोचते हैं कि वो सबकुछ ठीक कर सकते हैं। लेकिन हमारे यहां सेना के लोगों ने ही कह दिया है कि हम सेना सड़क पर नहीं उतारेंगे, हम संविधान के हिसाब से चलेंगे राष्ट्रपति के हिसाब से नहीं। अमेरिकी लोगों को प्रदर्श’न करने का हक है, लेकिन सत्ता में बैठे लोग लोकतंत्र को चुनौ’ती दे रहे हैं. चीन और रूस जैसे देशों में अभी भी अधिनायकवाद हो रहा है।

राहुल गांधी: भारत और अमेरिका के बीच जो पहले रिश्ते थे बेहतर होते थे, लेकिन पिछले कुछ साल में ये सिर्फ व्यापार की तरह हो गया है।

निकोलस बर्न्स: हमारे देश में दोनों पार्टियां बहुत कम एक विचार पर आती हैं, लेकिन अमेरिका हमेशा से ही भारत के साथ रहा है। दोनों देशों के बीच सबसे बेहतरीन संबंध लोगों के बीच है, जो देशों को साथ लाता है। आज भारतीय अमेरिकी लोग हमारे देश में हर जगह हैं, यही देश की खासियत है। अगर हमारे देशों के सामने कोई चुनौती है, तो चीन-रूस जैसे देश हैं। हम लड़ाई नहीं चाहते हैं लेकिन अपनी सुरक्षा करना हमारा फ’र्ज है।

राहुल गांधी: दोनों देशों के संबंध किस तरह आगे बढ़ रहे हैं?

निकोलस बर्न्स: हमारे देशों के सैन्य रिश्ते काफी मजबूत हैं, फिर चाहे थल हो या फिर वायुसेना ही क्यों ना हो। मुझे लगता है कि दोनों देशों को लोगों के आने-जाने पर स’ख्ती में कमी करनी चाहिए, H1B वीज़ा को लेकर काम किया जा सकता है और नियमों को आसान बनाया जा सकता है।

राहुल गांधी: अगर हम अमेरिका को देखें, तो पता लगता है कि कैसे कोरिया-जापान के साथ मिलकर बड़े आइडिया पर काम किया है। लेकिन अब अमेरिका में कुछ नया आइडिया नहीं आ रहा है, क्योंकि अमेरिका से आप पूरी दुनिया के लिए कुछ उम्मीद रखते हैं।

निकोलस बर्न्स: मुझे याद है जब हम मनमोहन सिंह के साथ काम कर रहे थे, तब हमारे देशों के बीच ट्रेड, मिलिट्री पर काम होता था. लेकिन हम बड़े विचार पर भी काम कर रहे थे, लेकिन अब वक्त है कि दोनों देशों को एक साथ आना होगा और लोगों को आजादी देनी होगी। हम चीन से ल’ड़ाई नहीं ल’ड़ रहे हैं, लेकिन एक विचारों की जं’ग जरूर हो रही है।

राहुल गांधी: मुझे लगता है कि हर वक्त में लोकतंत्र ही सही है, हमें अपने लोकतंत्र को और भी मजबूत करना होगा। आज दोनों देशों में लोग बोलने से ड’रते हैं, लेकिन हमें पहले जैसा माहौ’ल वापस लाना होगा।

निकोलस बर्न्स: दोनों देशों को इसको लेकर बात करनी होगी और काम भी करना होगा।

राहुल गांधी: क्या कोरोना सं’कट में दोनों देश साथ नहीं आए हैं?

निकोलस बर्न्स: G20 देशों को इस संकट में साथ आना था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। पीएम मोदी, ट्रंप और शिंजो आबे जैसे नेताओं को एक मंच पर आना था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ट्रंप अमेरिका को अकेले आगे ले जाना चाहते हैं और जिनपिंग उनसे ल’ड़ना चाहते हैं।

राहुल गांधी: मैंने एक बड़े व्यापारी से बात की, उन्होंने मुझे बताया कि उससे बात मत करो..ख’तरा होगा। क्या हर जगह इस तरह का ख’तरा है कि आप खुलकर बात ना कर पाएं।

निकोलस बर्न्स: ..ये पूरी दुनिया में है जहां पर एक विपक्ष को मुश्किल झे’लनी प’ड़ी है।

राहुल गांधी: मुझे पता है कि हमारे देश का DNA ऐसा नहीं है, लेकिन ये वक्त बुरा है। आज लोग एकजुट हो रहे हैं। लेकिन अब अमेरिका-रूस-भारत-चीन जैसे देशों में क्या होगा।

निकोलस: हमने अबतक क्लामेट चेंज जैसे बड़े मसलों को अलग रखा है, लेकिन अब एक ग्लोबल राजनीति को लेकर बात करनी होगी। क्योंकि कुछ मु’द्दे ऐसे आएंगे जहां पर हर किसी का साथ आना जरूरी है, जैसे कोरोना का सं’कट। पिछले 17 साल में कई तरह की बी’मारी सा’मने आई हैं, लेकिन देश साथ नहीं आए हैं।

निकोलस: मुझे लगता है कि सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क जरूरी है। अमेरिका में तो लोग अब फिर लापरवाह हो रहे हैं।

गौरतलब है कि  कोरोना संकट और लॉकडाउन के बीच राहुल गांधी ने बातचीत के एक इस सीरीज की शुरुआत की थी, जिसमें वो दुनियाभर के अलग-अलग क्षेत्रों के एक्सपर्ट्स से बात करते हैं।

कोरोना सं’कट के बीच राहुल गांधी कई लोगों से चर्चा कर चुके हैं, जिसमें RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन, अभिजीत बनर्जी जैसे आर्थिक क्षेत्र के बड़े नाम शामिल रहे हैं। इसके अलावा भी राहुल गांधी हार्वर्ड के प्रोफेसर से बातचीत कर चुके हैं। हाल ही में उन्होंने बिजनेसमैन राजीव बजाज के साथ भी संवाद किया था।

कौन हैं निकोलस बर्न्स?

निकोलस बर्न्स फिलहाल हार्वर्ड के जॉन एफ केनेडी स्कूल में ‘प्रैक्टिस ऑफ डिप्लोमेसी एंड इंटरनेशनल पॉलिटिक्स’ विभाग में प्रोफेसर हैं। बर्न्स हार्वर्ड केनेडी स्कूल में ‘फ्यूचर ऑफ डिप्लोमेसी प्रोजेक्ट’ के निदेशक और मध्य-पूर्व, भारत व दक्षिण एशिया प्रोग्राम्स के फैकल्टी चेयरमैन हैं। स्टेट डिपार्टमेंट में अपने करियर के दौरान वे यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ पॉलिटिकल अफेयर्स के अंडर सेक्रेटरी थे। वे भारत-अमेरिका एटमी समझौते के मुख्य वार्ताकार भी रहे हैं।