इस तरह प्रवासी मजदूरों की मदद करके मुस्लिम समुदाय ने मनाई ईद: देखें विडियो

कोरोना काल में लोगों के रहन-सहन के तरीकों में बड़ा बदलाव हो चुका है। त्योहारों को मनाने के तरीके भी अब बदलने लगे हैं क्योंकि पिछले 2 महीनों से देश में को’रोना वा’यरस के चलते देश मे लॉकडाउन चल रहा है।

ऐसे में इस बार नवरात्र का त्योहार लोगों ने घरों में ही पूजा पाठ करके मनाया तो वहीं जिले में लॉकडाउन के चलते मुस्लिम समुदाय  इस बार ईद को दूसरों की मदद करके मना रहा है।

हर साल ईद के त्योहार में लोग कपड़े और मीठी सेवइयों से खुशियां मनाते थे, लेकिन इस बार कोरोना के चलते यह त्योहार फीका पड़ गया है. इस बार जौनपुर में मुस्लिम समुदाय के लोग ईद के बचे हुए पैसों से प्रवासी मजदूरों को खाना-पानी और बिस्कुट बांट कर मदद कर रहे हैं।

मुस्लिम समुदाय के लोगों का कहना है कि कोई भी त्योहार खुशियों के लिए मनाया जाता है. इस बार ईद को दूसरों की मदद करके मना रहे हैं, क्योंकि इंसानियत से बड़ा कोई त्योहार नहीं होता है। कहा जाता है कि कोई भी त्योहार इंसानी खुशियों के लिए मनाया जाता है.

वहीं इस बार ईद त्योहार के मायने बदल गए हैं. कोरोना के चलते देश में 2 महीनों से चल रहे लॉकडाउन के कारण इस बार मुस्लिम समुदाय के लोग ईद नहीं मना रहे हैं. इस बार जौनपुर में मुस्लिम समुदाय के लोग ईद के पैसों से इंसानियत का फर्ज निभा रहे हैं. अटाला मस्जिद से लेकर शाही किले तक मुस्लिमों की कई टोलियां दिन-रात प्रवासी मजदूरों को खाना-पानी से मदद करके ईद की खुशियां मना रहे हैं.

मजदूरों की मदद करने को लेकर क्या कहते हैं लोग?

मजदूरअटाला मस्जिद पर प्रवासी मजदूरों को खाना बांट रहे तौफीक अहमद कहते हैं कि ईद का त्योहार खुशियों के लिए मनाया जाता है। इस बार ईद को वह घरों में न मनाकर बल्कि प्रवासी मजदूरों की मदद करके मना रहे हैं.

प्रवासी मजदूरों की मदद कर रहे डॉ. सईद कहते हैं कि इस बार ईद को दूसरों की मदद करके मनाया जा रहा है. इसमें बहुत मजा आ रहा है, जिसका कोई अंदाजा नहीं है. सही मायने में असली त्योहार यही है. अटाला मस्जिद की अवैस अहमद काजमी बताते हैं कि वह कई दिनों से प्रवासी मजदूरों की मदद कर रहे हैं. इंसानियत की मदद करना सबसे बड़ा धर्म है और इस बार वह ईद को इसी रूप में मना रहे हैं।