राजनीति को अलग रखकर अगर दुनिया के अर्थशास्त्र-जगत की बात की जाये, तो देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह को न सिर्फ बेहद अदब दिया जाता है बल्कि अर्थव्यवस्था को लेकर उनकी कही बातों पर गौर करने के साथ ही कई देशों की सरकारें उन पर अमल भी करती हैं. अभी हाल ही में उन्होंने देश के बदतर होते आर्थिक हाला’त पर मोदी सरकार को नसीहत देते हुए आगाह किया है कि कोरोना महामा’री के कारण जो हालात बने हैं, उससे उबरने के लिए आगे का रास्ता बेहद चुनौतीपूर्ण है.
लिहाजा भारत को अपनी प्राथमिकताएं दोबारा से तय करनी होंगी. हो सकता है कि केंद्र सरकार को उनकी इस नसीहत में भी सियासत नज़र आई हो लेकिन अब अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ ने मनमोहन के इस बयान पर अपनी मुहर लगाते हुए इसे सच साबित कर दिया है.
आईएमएफ ने इस साल भारत की विकास दर के अनुमान में तीन प्रतिशत की बड़ी कटौ’ती कर दी है, जो अभूतपूर्व होने के साथ ही देश के लिए चिं’ताजनक भी है. क्योंकि आईएमएफ ने अप्रैल में जारी अपने अनुमान में इसे 12.5 फीसदी बताया था, जिसे अब घ’टाकर 9.5 प्रतिशत कर दिया गया है.
रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया का भी कमोबेश यही अनुमान है. इसलिये यह कहना गलत नहीं होगा कि मनमोहन सिंह एक क़ाबिल अर्थशास्त्री होने के साथ ही देश की अर्थव्यवस्था के सटीक भविष्यद्रष्टा भी हैं.
एक अच्छा ज्योतिषी किसी इंसान का भविष्य सौ फीसदी सही बताने में थोड़ा चूक सकता है लेकिन बरसों का अनुभव रखने वाले अपने किसी योग्य अर्थशास्त्री पर एक देश पूरा भरोसा करते हुए उसके मुताबिक ही अपनी आर्थिक नीतियां बनाता है.
दिलचस्प बात ये है कि दुनिया के तमाम देशों में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का सीधा नाता अब कोरोना वैक्सीन से जुड़ गया है और उसी आधार पर उसके नतीजे भी सामने आ रहे हैं. मंगलवार को जारी हुई वर्ल्ड इकनोमिक आउटलुक में इस तथ्य का खुलासा करते हुए कहा गया है कि कोविड महामा’री की दूसरी लहर ने आर्थिक रिकवरी के मामले में दुनिया को दो हिस्सों में बांट दिया है.
जिन देशों में वेक्सीनेशन तेजी से हो रहा है, वहां आर्थिक गतिविधियां भी तेजी से पटरी पर लौट रही हैं. लेकिन जिन देशों में टीकाकरण की रफ़्तार धीमी है, वे अभी भी आर्थिक रुप से कमजोर ही बने हुए हैं.
मसलन, अमेरिका व यूरोप के विकसित देशों में वहां की 35 फीसदी आबादी को कोरोना टीके के दोनों डोज़ लग चुके हैं. लिहाजा वहां की अर्थव्यवस्था ने विकास की रफ़्तार तेजी से पक’ड़ ली है. जबकि भारत में अब तक महज 10 करोड़ लोगों को ही दोनों डोज़ लग पाई हैं.
यह भी कम हैरानी की बात नहीं कि जो तथ्य आज वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक में बताया गया है, उसका अंदाज़ा मनमोहन सिंह ने साढे तीन महीने पहले ही लगा लिया था. पिछली 17 अप्रैल को मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक चिट्ठी लिखी थी जिसमें उन्होंने अन्य बिंदुओं के अलावा देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए वेक्सीनेशन में तेजी लाने पर जोर देते हुए पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन आयातकरने का सुझाव भी दिया था.
इस पत्र में उन्होंने लिखा था, “कितने लोगों को कोरोना वैक्सीन दी जा रही है, ये देखने के बजाय आबादी के कितने प्रतिशत हिस्से का टीकाकरण किया जा रहा है, ये देखा जाना चाहिए.लिहाजा कोविड टीकाकरण अभियान में तेजी लाकर कोरोना महामा’री से मु’काबला किया जा सकता है.”
उन्होंने एक और अहम तथ्य की तरफ भी ध्यान दिलाया था कि “भारत में आबादी के एक बहुत छोटे से हिस्से को ही अभी तक टीका मिल पाया है. महामारी से ल’ड़ने के लिए हमें कई कदम उठाने चाहिए. लेकिन इन कोशिशों का बड़ा हिस्सा टीकाकरण अभियान में तेजी लाना होना चाहिए.सरकार को यह सच्चाई मानने से अपना मुंह नहीं मोड़ना चाहिए.”
मनमोहन सिंह का यह अनुमान भी सही साबित हुआ क्योंकि देश की 130 करोड़ आबादी में से महज 8 प्रतिशत लोगों को ही अब तक वैक्सीन की दोनों डोज़ लग सकी हैं.