सीमा विवाद को लेकर नेपाल के उपप्रधानमंत्री ने भारत पर दिया ये बड़ा बयान

नेपाल के उपप्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री ने कहा है कि भारत के साथ बातचीत के माध्यम से सीमा विवाद को सुलझा लिया जाएगा। इसके लिए हम प्रतिबद्ध हैं। दोनों देशों की सीमा पर सेना की तैनाती का सवाल ही उत्पन्न नहीं होता है।

आपको बता दें कि नेपाल ने हाल में देश का संशोधित राजनीतिक और प्रशासनिक मानचित्र जारी किया था, जिसमें उसने सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इलाकों लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा पर दावा किया था।

भारत ने इस पहल पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि क्षेत्र पर बढ़ा-चढ़ाकर किए गए कृत्रिम दावे को स्वीकार नहीं करेगा और पड़ोसी देश से इस तरह के अनुचित मानचित्र दावे से अलग रहने को कहा।

नेपाल सरकार ने लिपुलेख क्षेत्र में भारत द्वारा किए जा रहे सड़क निर्माण का विरोध किया था। भारतीय राजदूत को बुलाकर इस मामले आपत्ति दर्ज कराया था। आपको बता दें कि नेपाल का दावा है कि यह इलाका उसके हिस्से में आता है। इससे पहले भारत ने चीन के साथ लगे सीमा पर लिपुलेख तक सड़क के निर्माण के खिलाफ नेपाल के विरोध को खारिज कर दिया था।

भारत ने कहा था कि यह क्षेत्र पूरी तरह से भारत के हिस्से में है। साथ ही यह भी कहा था कि दोनों पक्ष राजनयिक बातचीत के माध्यम से इस तरह के सीमा मुद्दों को हल कर सकते हैं।

दरअसल, भारत ओर नेपाल के प्राचीन संबंध रहे हैं। संबंधों की यह डोर इतनी महीन और गहरी है कि यह संबंध बेटी-रोटी का संबंध है। यह संबंध ब्याह-शादी के हैं, रक्षा के बंधन के हैं और उत्सव और त्योहारों के हैं।

भारत में तकरीबन 30 लाख से ज्यादा नेपाली रहते हैं और उन्हें यहां रहने, यहां की सेना में शामिल होने और सीमाओं में बिना किसी पहचान-पत्र और दस्तावेज के प्रवेश कर भारत में घर बनाने तक के अधिकार हैं।

यहां के शहरों में नेपालियों के नाम जमीन-जायदाद और संपत्ति है। घर हैं रिश्तेदार हैं। जाहिर है एक सामान्य नेपाली जिसे भारत में सभी सुविधाएं मिल रही हैं, जिसे दूसरे देश में भी अपने घर जैसा अनुभव हो रहा है तो उसके लिए भारत-नेपाल सीमा का कोई वास्तविक अर्थ नहीं हो सकता है।

संपत्ति और सुरक्षा के अधिकार बिल्कुल उसी तरह हैं जैसे भारत में एक भारतीय नागरिक की तरह रहते हैं ऐसे में लिपुलेख और कालापानी के नक्शे केवल सियासी शोर में जाकर विलीन हो जाते हैं।

बात यदि नक्शे पर दिखाए गए इलाकों की भी करें तो कालापानी क्षेत्र में रह रहे लोगों को भी नहीं पता की भारत और नेपाल को बांटने वाली सीमा कहां है। जबकि बुधी और गंजी जैसे इलाके साल भर निर्जन ही रहते हैं। जनसंख्या ना के बराबर ही मानें। यहां कोई आता-जाता नहीं।

हां आधी सदी पहले यहां से कुछ लोग मानसरोवर यात्रा में भागीदार थे लेकिन अब वह भी नहीं है। मानसरोवर यात्रा भी अब यहां के स्थानीय लोगों की मदद से कुमाऊं विकास मंडल निगम यानी की KMPN करवाता है।