एम्स के डॉक्टरों और आईसीएमआर शोध समूह के दो सदस्यों सहित स्वास्थ्य विशेषज्ञों के एक समूह का कहना है कि देश की घनी और मध्यम आबादी वाले क्षेत्रों में कोरोना वायरस संक्रमण के सामुदायिक प्रसार की पुष्टि हो चुकी है.
वहीं सरकार बार-बार यह कह रही है कि भारत में कोरोना वायरस संक्रमण सामुदायिक प्रसार के स्तर पर नहीं पहुंचा है जबकि सोमवार तक देश में कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या 5,394 पर पहुंच गयी और संक्रमण के कुल मामले 1,90,535हो गये हैं.
➡️ Community transmission well established.
➡️ Migrants should've been allowed to go home early on.
➡️ Govt strategies incoherent.Medical professionals associations' letter to the govt. COVID National Task Force's epidemiology group head also a signatoryhttps://t.co/NHAmkKmIG4
— Ruchira Chaturvedi (@RuchiraC) June 1, 2020
भारतीय लोक स्वास्थ्य संघ(आईपीएचए),इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन(आईएपीएसएम) और भारतीय महामारीविद संघ (आईएई) के विशेषज्ञों द्वारा संकलित एक रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंपी गयी है.
रिपोर्ट में कहा गया है, “देश की घनी और मध्यम आबादी वाले क्षेत्रों में कोरोना वायरस संक्रमण के सामुदायिक प्रसार की पुष्टि हो चुकी है और इस स्तर पर कोविड-19 को खत्म करना अवास्तविक जान पड़ता है.”
रिपोर्ट के अनुसार, “ राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन महामारी के प्रसार को रोकने और प्रबंधन के लिए प्रभावी योजना बनाने के लिए किया गया था ताकि स्वास्थ्य सेवा प्रणाली प्रभावित ना हो.
यह संभव हो रहा था लेकिन नागरिकों को हो रही असुविधा और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के प्रयास में चौथे लॉकडाउन में दी गई राहतों के कारण यह प्रसार बढ़ा है.”
कोविड कार्य बल के 16 सदस्यीय संयुक्त समूह में आईएपीएसएम के पूर्व अध्यक्ष और एम्स दिल्ली में सामुदायिक चिकित्सा केंद्र के प्रमुख डॉ शशि कांत,आईपीएचए के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सीसीएम एम्स के प्रोफेसर डॉ संजय के राय, सामुदायिक चिकित्सा,आईएमएस, बीएचयू, वाराणसी के पूर्व प्रोफेसर और प्रमुख डॉ डीसीएस रेड्डी, डीसीएम और एसपीएच पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ के पूर्व प्रोफेसर और प्रमुख डॉ राजेश कुमार शामिल हैं.
विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि महामारी से निपटने के उपायों संबंधी निर्णय लेते समय महामारी विदों से सलाह नहीं ली गयी. रिपोर्ट में कहा गया है , “ भारत सरकार ने महामारीविदों से परामर्श लिया होता जिन्हें अन्य की तुलना में इसकी बेहतर समझ होती है तो शायद बेहतर उपाय किये जाते.”
विशेषज्ञों ने कहा, ऐसा लगता है कि मौजूदा सार्वजनिक जानकारी के आधार पर सरकार को चिकित्सकों और अकादमिक महामारी विज्ञानियों द्वारा सलाह दी गई थी.
उन्होंने कहा, ‘‘नीति निर्माताओं ने स्पष्ट रूप से सामान्य प्रशासनिक नौकरशाहों पर भरोसा किया जबकि इस पूरी प्रक्रिया में महामारी विज्ञान, सार्वजनिक स्वास्थ्य, निवारक चिकित्सा और सामाजिक वैज्ञानिकी क्षेत्र के विशेषज्ञों की भूमिका काफी सीमित थी.”
विशेषज्ञों ने कहा कि भारत इस समय मानवीय संकट और महामारी के रुप में भारी कीमत चुका रहा है.