Goldman Sachs की राय: मनमोहन सरकार का पैकेज था मोदी सरकार से बेहतर’

भारत सरकार की ओर से कोरोना वायरस के चलते पैदा हुए आर्थिक संकट से निपटने के लिए 21 लाख करोड़ रुपये का पैकेज जारी किया है। लेकिन गोल्डमैन सैक्स का कहना है कि इस पैकेज के बावजूद भारत कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में से एक होगा।

गोल्डमैन सैक्स ने अपने अनुमान में बताया है कि 1979 के बाद देश में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर आर्थिक मंदी आएगी। Goldman Sachs के मुताबिक कोरोना के संकट से भारतीय अर्थव्यवस्था में इस तिमाही में 45 फीसदी की कमी देखने को मिलेगी।

इसके अलावा जीडीपी में इस साल 5 फीसदी की गिरावट आने की आशंका है। हालांकि गोल्डमैन सैक्स ने अपने अनुमान में यह भी कहा है कि आर्थिक गतिविधियां शुरू होने के बाद तीसरी तिमाही में 20 फीसदी तक का सुधार देखने को मिल सकता है।

गोल्डमैन सैक्स ने कहा कि कोरोना के संकट को देखते हुए यह पैकेज काफी कम है। अमेरिकी इन्वेस्टमेंट बैंक ने कहा कि 2009 के संकट के दौरान जिस तरह से पॉलिसीमेकर्स ने स्थितियों को संभाला था, यह उसके मुकाबले कमजोर है। तब यूपीए सरकार सत्ता में थी।

गोल्डमैन सैक्स ने अपनी रिसर्च रिपोर्ट में कहा कि 2009 के दौर में भारत आंतरिक रूप से काफी मजबूत था, उसके बाद भी नीतिगत तौर पर पॉलिसीमेकर्स ने बड़ा सपोर्ट किया था। अप्रैल और जून तिमाही में अमेरिकी इन्वेस्टमेंट बैंक ने भारत की अर्थव्यवस्था में 45 फीसदी तक की कमी आने की आशंका जताई है। इसके पहले इसी एजेंसी 20% की गिरावट का अनुमान लगाया था।

पैकेज का उतना असर नहीं देखेगा, जितनी सरकार को उम्मीद:

‘भारत में गहरी मंदी’ शीर्षक से तैयार की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि मोदी सरकार की ओर से जिन सुधारों का ऐलान किया गया है, उनका उतना असर देखने को नहीं मिलेगा, जितना सरकार उम्मीद कर रही है। यही नहीं रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन फैसलों से आर्थिक ग्रोथ को लेकर तत्काल कोई उम्मीद नहीं की जा सकती।

विशेषज्ञ बोले, डिमांड बढ़ाने के नहीं हुए उपाय:

कोरोना के संकट से निपटने के लिए सरकार की ओर से जारी किए गए पैकेज को कई अर्थशास्त्रियों ने नाकाफी बताते हुए कहा है कि इसमें सप्लाई बढ़ाने के प्रयास किए गए हैं, लेकिन बाजार मांग में इजाफे के बगैर नहीं चल सकता।

इसके अलावा सरकार के पैकेज की इस बात को लेकर भी आलोचना की जा रही है कि इसमें लोन गारंटी की स्कीमों का ज्यादा ऐलान किया गया है, लेकिन सरकार ने अपने खजाने से सीधे तौर पर मदद करने का प्रयास नहीं किया है।