सिर्फ एक झूठ इस प्रधानमंत्री पर पड़ गया था भारी, क्या भारत के नेता सीखेंगे कुछ?

झूठ बोलने की वजह से फिनलैंड के प्रधानमंत्री एंटी रिने को इस्तीफा देना पड़ा लेकिन हमारे यहां तो सरकार बनाने और चुनाव जीतने के लिए नेता अनगिनत झूठ बोलते हैं. यहां तो राजनीति की शुरुआत ही झूठ से होती है. फिनलैंड के प्रधानमंत्री ने देश में चल रही पोस्टल स्ट्राइक को लेकर संसद को गुमराह किया था. उनका झूठ पकड़ा गया और उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा.

नवंबर के महीने में हजारों की संख्या में फ़िनलैंड के स्टेट पोस्टल सर्विस के कर्मचारी सड़क पर उतरे. करीब दो हफ्ते तक यह प्रदर्शन चला. प्रदर्शन के पीछे मुख्य वजह थी उनकी वर्किंग कंडीशन में बदलाव और वेतन में कटौती. फ़िनलैंड के पोस्टल सर्विस के कर्मचारी जब सड़क पर उतरे तो कई अन्य संस्थाएं साथ देने के लिए भी सड़क पर उतरीं. फ़िनलैंड का ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट भी प्रदर्शन में शामिल हुआ.

एयर लाइन के कर्मचारी जब प्रदर्शन में शामिल हुए तो तीन दिन के अंदर फ़िनलैंड की 300 फ्लाइटें रद्द हो गईं.  क्रूज, जहाज़ भी पोर्ट पर खड़े रह गए. फिनलैंड में अफरातफरी का माहौल था. 27 नवंबर को गवर्निंग बोर्ड को कर्मचारियों के सामने झुकना पड़ा और कार्यकारी स्थिति में बदलाव और तनख्वाह में कटौती को लेकर जो प्रस्ताव दिया गया था उसे वापस लेना पड़ा.

फ़िनलैंड के पीएम ने 28 नवंबर को संसद में कहा कि सरकार नहीं चाहती थी कि कार्यकारी स्थिति में बदलाव और वेतन में कोई कटौती हो लेकिन पोस्टल सर्विसेस का गवर्निंग बोर्ड किसी भी हालात में बदलाव चाहता था. फ़िनलैंड के प्रधानमंत्री के बयान के बाद पोस्टल सर्विस के गवर्निंग बोर्ड के चेयरपर्सन ने कहा कि प्रधानमंत्री संसद को गुमराह कर रहे हैं.

सरकार ने कार्यकारी स्थिति के बदलाव और वेतन में कटौती के लिए दिए गए प्रस्ताव का कभी विरोध ही नहीं किया.जब फ़िनलैंड के प्रधानमंत्री का झूठ पकड़ा गया तो विपक्ष संसद में हंगामा करने लगा और पीएम को इस्तीफ़ा देना पड़ा.

छह महीने पहले एंटी रिने फ़िनलैंड के पीएम बने थे. रिने की पार्टी के पास पूर्ण बहुमत नहीं है, चार अन्य पार्टियों के समर्थन से वे सरकार चला रहे थे जिसमें सेन्टर पार्टी भी शामिल थी. सेन्टर पार्टी ने कहा कि फ़िनलैंड के प्रधानमंत्री विश्वास खो चुके हैं और उन पर विश्वास करना अब संभव नहीं है. इसके बाद रिने को इस्तीफ़ा देना पड़ा.

अब फ़िनलैंड में कौन प्रधानमंत्री बनेगा, यह देखना बाकी है. वैसे भी सेंट्रल पार्टी नहीं चाहती है कि देश में चुनाव हो. रिने की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी को सेंटर पार्टी अपना समर्थन जारी रखेगी. यह कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री बनने की रेस में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की सन्ना मरीन (Sanna Marin) सबसे आगे हैं. मरीन की उम्र 34 साल है. अगर वे प्रधानमंत्री बनती हैं तो फ़िनलैंड के इतिहास में वे सबसे कम उम्र की प्रधानमंत्री होंगी.

यह पहली बार नहीं कि झूठ बोलने की वजह से फ़िनलैंड के किसी प्रधानमंत्री को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी है. सन 2003 में सेंटर पार्टी के प्रधानमंत्री Anneli Jaatteenmaki ने झूठ बोला था और कुर्सी छोड़ना पड़ी थी. सन 2015 में फ़िनलैंड के प्रधानमंत्री Alexander Stubb को झूठ बोलने की वजह से संसद में माफी मांगना पड़ी, हालांकि उनकी कुर्सी बच गई थी. उस समय Stubb ने कहा था कि 90 प्रतिशत एक्सपर्ट मनाते हैं कि उनकी तरफ से दिया गया बांड पालिसी का प्रस्ताव सकारात्मक था, जबकि ऐसा नहीं था.

क्या हमारे देश में किसी नेता ने झूठ बोलने की वजह से कभी अपना पद छोड़ा है, या माफी मांगा है? लगता नहीं कभी ऐसा हुआ है, और आगे होने की संभावना भी नहीं दिख रही है. हमारे यहां के नेता झूठ बोलने और गुमराह करने के बाद यही कहते हैं कि उनके बयान को गलत संदर्भ में लिया गया. चुनाव जीतने के लिए तो यहां आईटी सेल बनाए गए हैं, जो झूठ फैलाते रहते हैं.

गलती सिर्फ नेताओं की नहीं, यहां की जनता की भी है. जनता बेवकूफ़ बनने के लिए तैयार है तो नेता बेवकूफ़ बना रहे हैं. हिन्दू-मुस्लिम डिबेट में लोग खुश हैं. नेता जब चुनावी रैलियों में झूठ बोलते हैं तो लोग ताली बजाते हैं. चुनाव खत्म हो जाते हैं तो लोगों को समस्याएं याद आती हैं. चुनाव के दौरान तो अपने नेता के लिए प्यार ही प्यार रहता है. जनता स्टेचू बन जाने पर ज्यादा खुश नजर आती है, जबकि उसके लिए अस्पताल ज्यादा मायने रखता है.

आज भी दिल्ली में कई जगहों पर प्रदर्शन हो रहे हैं. चुनाव के बाद अगर सरकार नहीं सुनती है तो दबाव बनाने के लिए प्रदर्शन एक जरिया हो सकता है, लेकिन सबसे बड़ी बात है कि आप किस मुद्दे पर वोट दे रहे हैं. लोग प्रधानमंत्री उम्मीदवार कौन है, देखते हैं. यह नहीं देखते हैं कि जिस सांसद को वोट देकर जिता रहे हैं वह ठीक है या नहीं?

जब समस्या का समाधान नहीं होता है तो प्रदर्शन करने के लिए जंतर मंतर पहुंच जाते हैं. सबसे पहले तो अपने सांसद और विधायक के घर के सामने बैठना चाहिए. सांसद और विधायक को मजबूर करना चाहिए कि वह उनके मुद्दे को संसद या विधानसभा में उठाए. अगर नेता मुद्दा नहीं उठाता है तो जब अगले चुनाव में वोट मांगने आए तो दरवाजा बंद कर दें. लोगों को खुद के लिए खुद की लड़ाई में शामिल होना पड़ेगा.

दिल्ली आकर प्रदर्शन करने से सब कुछ ठीक नहीं हो जाता है, न तो सरकार सुनती है, ना मीडिया. मीडिया को टीआरपी चाहिए. आम लोगों का प्रदर्शन कभी मीडिया के लिए टीआरपी का टॉपिक नहीं हो सकता है. जिस टीवी स्क्रीन पर आम लोग दिखना चाहिए वहां नेताओं की शक्ल और बाइट दिखाई देती है. इसीलिए लोगों को खुद में बदलाव लाना जरूरी है.

सुशील मोहपात्रा के फेसबुक वाल से लिया गया लेख

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