को’रोना वा’यरस और लॉकडाउन के बीच सरकारों की तमाम अपीलों के बावजूद प्रवासियों मजूदरों का अपने राज्यों की तरफ लौटना जारी है। अपने गृह नगर लौटने वाले प्रवासियों में एक मोहम्मद जुबैर भी हैं, जो दिव्यांग होने के बावजूद सैकड़ों किलोमीटर एक हाथ से रिक्शा चलाकर बिहार पहुंचे।
दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर गाजीपुर से यहां तक पहुंचने में 28 साल के दिव्यांग को करीब दो हफ्तों का समय लगा। बचपन में पोलियो से प्रभावित और बाएं हाथ का इस्तेमाल करने में असमर्थ जुबैर ने तिपहिया साइकिल चलाने के लिए अपने दाएं हाथ का इस्तेमाल किया और रोजाना करीब 50-60 किलोमीटर की दूरी तय की।
जुबैर कहते हैं कि वो दो महीना पहले नौकरी की तलाश में दिल्ली गए थे मगर अब कभी राष्ट्रीय राजधानी नहीं लौटेंगे। जुबैर कहते हैं कि वो गाजीपुर मंडी में मछलियों के कारोबार से जुड़े थे, जहां उन्हें 200 रुपए प्रतिदिन का भुगतान किया जाता था। मगर सरकार द्वारा लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई।
वह बताते हैं कि पहले लॉकडाउन के बाद उन्हें आर्थिक तंगी का अहसास होने लगा था। ऐसे में 23 अप्रैल को उन्होंने कुछ पिटे हुए चावल, गुड़ और नमकीन पैक की और अररिया स्थित अपने घर के लिए तिपहिया साइकिल पर निकल पड़े।
बता दें कि खबर लिखे जाने तक थके और कमजोर जुबैर गोपालगंज चेकपोस्ट प्रवासियों के पंजीकरण के लिए कतार में है और एक ऐसी बस ढूंढने की उम्मीद में हैं जो छत पर उनके वाहन को भी साथ ले जा सके। चेक पोस्ट के पास दिल्ली, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश के प्रवासियों के अन्य बड़े-बड़े समूह भी मौजूद हैं। ये बिहार के 38 में से 25 जिलों के लोगों के लिए प्रवेश द्वार है।
यहां मौजूद अधिकांश प्रवासियों में से अररिया, कटिहार, सुपौल, मधेपुरा, सहरसा, समस्तीपुर, किशनगंज, पूर्वी चंपारण, पश्चिम चंपारण के हैं। इस बीच कुछ लोगों ने कहा कि उन्होंने ट्रक से लिफ्ट लेकर पैदल यात्रा भी की। कुछ लोग मोटर बाइक से आए हैं। ऐसे भी बहुत से लोग है जिन्होंने कारों में सवारी के लिए बड़ी रकम का भुगतान किया है। इनमें अधिकांश लोग दैनिक मजदूर हैं। कुछ दर्जी, रेहड़ी वाले और राजमिस्त्री का काम करने वाले हैं।