दारुल उलूम देवबंद ने न्यूज चैनलों की बहस में दारुल उलूम का नाम इस्तेमाल किए जाने पर कड़ी आपत्ति जताई है। दारुल उलूम ने कहा कि यदि चैनल या उनके रिपोर्टर ऐसा करना बंद नहीं करते तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
दारुल उलूम के मीडिया प्रभारी अशरफ उस्मानी ने कहा कि आजकल न्यूज चैनल वाले अपने शो में आने वाले किसी भी मौलवी को दारुल उलूम देवबंद का बताकर पेश करते हैं। हालांकि दारुल उलूम देवबंद का कभी भी कोई उलमा टीवी शो पर नहीं जाता है।
उन्होंने ऐसे टीवी चैनल और उनके रिपोर्टरों को चेताते हुए कहा कि अगर आइंदा कभी किसी चैनल ने किसी मौलवी का नाम दारुल उलूम से जोड़ा या उस खबर में दारुल उलूम के विजुअल दिखाए तो ऐसे चैनल और उनके रिपोर्टरों के खिलाफ वैधानिक कार्रवाई करने पर मजबूर होंगे।
इस्लामी दुनिया में दारुल उलूम देवबन्द का एक विशेष स्थान है जिसने पूरे क्षेत्र को ही नहीं, पूरी दुनिया के मुसलमानों को प्रभावित किया है। दारुल उलूम देवबन्द केवल इस्लामी विश्वविद्यालय ही नहीं एक विचारधारा है, जो अंधविश्वास, कूरीतियों व अडम्बरों के विरूद्ध इस्लाम को अपने मूल और शुद्ध रूप में प्रसारित करता है। इसलिए मुसलमानों में इस विचाधारा से प्रभावित मुसलमानों को ”देवबन्दी“ कहा जाता है।
आपको बता दे कि, देवबन्द उत्तर प्रदेश के महत्वपूर्ण नगरों में गिना जाता है जो आबादी के लिहाज़ से तो एक लाख से कुछ ज़्यादा आबादी का एक छोटा सा नगर है। लेकिन दारुल उलूम ने इस नगर को बड़े-बड़े नगरों से भारी व सम्मानजनक बना दिया है, जो न केवल अपने गर्भ में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रखता है, अपितु आज भी साम्प्रदायिक सौहार्द, धर्मनिरपेक्षता एवं देशप्रेम का एक विशिष्ट नमूना प्रस्तुत करता है।
आज देवबन्द इस्लामी शिक्षा व दर्शन के प्रचार के व प्रसार के लिए संपूर्ण संसार में प्रसिद्ध है। भारतीय संस्कृति व इस्लामी शिक्षा एवं संस्कृति में जो समन्वय आज हिन्दुस्तान में देखने को मिलता है उसका सीधा-साधा श्रेय देवबन्द दारुल उलूम को जाता है।
यह मदरसा मुख्य रूप से उच्च अरबी व इस्लामी शिक्षा का केंद्र बिन्दु है। दारुल उलूम ने न केवल इस्लामिक शोध व सहित्य के संबंध में विशेष भूमिका निभाई है, बल्कि भारतीय समाज व पर्यावरण में इस्लामिक सोच व संस्कृति को नवीन आयाम तथा अनुकूलन दिया है।
दारुल उलूम देवबन्द की आधारशिला 30 मई 1866 में हाजी आबिद हुसैन व मौलाना क़ासिम नानौतवी द्वारा रखी गयी थी।