चीन के कर्ज में दबी है आधी से ज्यादा दुनिया, भारत में इतना है निवेश

लद्दाख के गलवान घाटी में भारत और चीनी सेना के बीच हिं’सक झ’ड़प में 20 भारतीय जवानों के शहीद होने के बाद त’नाव काफी बढ़ गया है. देश में लोग चीनी उत्पादों का विरो’ध कर रहे हैं और इनपर प्रतिं’बध लगाने के लिए सोशल मीडिया पर कैंपेन चल रहा है. ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत में ही बल्कि दुनिया के 100 से भी ज्यादा देशों में चीन ने अपने उ’त्पाद और कर्ज के जरिए पैठ बना ली है.

चीन शुरुआती समय से ही एक नीति को लेकर चल रहा है, वो नीति है कमजो’र पड़ोसियों को कर्ज के जाल में फं’साए रखना और सक्षम देशों को वि’वादों में उलझाए रखना. चीन अपनी इसी नीति के जरिए 150 से ज्यादा देशों में 112.5 लाख करोड़ रुपये का बां’ट चुका है.

कमजो’र देशों को भारी भरकम कर्ज देकर चीन उन्हें अपने पक्ष में करने की कोशिश में लगा रहता है ताकि दुनिया में उसे अमेरिका के मुका’बले एक वैश्विक ताकत माना जाए.

चीन 150 से ज्यादा देशों को अब तक लोन बां’ट चुका है जो वैश्विक जीडीपी का करीब 5 फीसदी है. चीन सरकार और उसकी सहायक कंपनियां दूसरे देशों को करीब 1.5 ट्रिलियन डॉलर यानी की 112.5 करोड़ से ज्यादा रुपये का कर्ज दे चुकी है.

इतना ही नहीं चीन अब विश्व बैंक और आईएमएफ से भी बड़ा कर्जदाता बन गया है. साल 2000 से 2014 के बीच में अमेरिका ने अन्य देशों को 394.6 अरब डॉलर का कर्ज दिया जबकि चीन ने भी 354.4 अरब डॉलर का कर्ज कमजो’र देशों के बीच बां’टा. बाद के सालों में जब अमेरिका ने कर्ज में कटौ’ती की तो चीन इस मा’मले में उससे आगे निकल गया.

बता दें कि विश्व बैंक, आईएमएफ और सभी वित्तीय अंतरराष्ट्रीय समूहों द्वारा बांटा गया कर्ज अकेले चीन के बां’टे गए कर्ज से कम ही है. चीन ने ज्यादातर देशों में लोन इंफ्रास्ट्रक्चर, एनर्जी और माइनिंग जैसे क्षेत्रों के लिए दिया है. इससे समझा जा सकता है कि अप्रत्यक्ष तौर पर चीन उसका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कभी भी कर सकता है.

आपको जानकर हैरानी होगी कि 50 से ज्यादा विकासशील देशों को चीन ने जो कर्ज दिया था वो साल 2005 में उसकी जीडीपी का एक फीसदी से भी कम था. लेकिन साल 2017 में बढ़कर यह 15 फीसदी तक पहुंच चुका है.

वहीं बात अगर भारत की करें तो चीन ने यहां भी भारी निवेश कर रखा है. साल 2014 तक भारत में चीन  1.6 अरब डॉलर का निवेश कर चुका था जो सिर्फ 3 सालों में बढ़कर 8 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है.

अगर चीन ने भारत में भविष्य में निवेश को लेकर जो घोषनाएं की है उसको भी जोड़ दें तो यह आंकड़ा 26 अरब डॉलर तक पहुंच जाता है.

अब अगर चीन के दूसरों देशों के साथ वि’वाद की बात करें तो इसकी लिस्ट भी काफी लंबी है. भारत के अलावा किसी ना किसी मु’द्दे को लेकर चीन का जापान, वियतनाम, अमेरिका, मलेशिया से भी वि’वाद है. चीन और ताइवान के बीच गं’भीर त’नाव है.

भारत के वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार चीन यहां स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिकल उपकरण, ऑटो कंपोनेंट, फार्मास्युटिकिल उत्पाद, कैमिकल, टेलीकॉम, स्टील जैसी चीजें निर्यात करता है.

विशेषज्ञों के मुताबिक अगर मौजूदा त’नाव और ब’ढ़ता है और दोनों देशों के व्यापारिक रिश्ते ख’राब होते हैं तो इसका ज्यादा नु’कसान अभी भारत को ही उठाना प’ड़ेगा. कारोबार बं’द होने पर आयात के मा’मले में जहां चीन को 1 फीसदी का नु’कसान होगा वहीं भारत को 14 फीसदी तक नु’कसान हो सकता है. कुछ यही स्थिति निर्यात में भी है.