लॉकडाउन: अरब देशों में फंसे भारतीयों को वापस कैसे लायेगा भारत?

भारत सरकार ने विदेशों में फंसे भारतीयों को चरणबद्ध तरीक़े से वापस लाने की योजना तैयार की है.

गृह मंत्रालय के अनुसार ‘विदेशों में फँसे भारतीयों को हवाई जहाज़ और नौ-सेना के जहाज़ों से भारत लाया जाएगा जिसकी शुरुआत 7 मई से होगी.’

वाणिज्य दूतावास के अनुसार ‘विदेशों में स्थित भारतीय दूतावास और उच्चायोगों के पास मौजूद यात्रियों की फ़ेहरिस्त को देखकर वहाँ फँसे भारतीय नागरिकों से संपर्क किया जा रहा है.

फिर वापस भारत लौटने वाले भारतीयों की जो सूची तैयार होगी, उसमें प्राथमिकता उन श्रमिकों को दी जाएगी जो बुरी परिस्थितियों में हैं, व्यथित हैं. बूढ़े लोगों, गर्भवती महिलाओं और बीमार लोगों को भी सामान्य स्थिति में रह रहे लोगों से पहले भारत लाया जाएगा. जिन लोगों का नाम भारतीय दूतावास या उच्चायोग की सूची में नहीं होगा, उन्हें टिकट नहीं मिलेगा.’

भारत सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि ‘इस सुविधा के लिए विदेशों में फँसे भारतीयों को ही भुगतान करना होगा.’ यानी टिकट की क़ीमत और यात्रा के दौरान होने वाले ख़र्च उन्हें ख़ुद देखने होंगे.

दुबई स्थित भारत के वाणिज्य दूतावास ने यह भी स्पष्ट किया है कि ‘टिकट की क़ीमत और यात्रा से जुड़ी अन्य शर्तें वक़्त आने पर बताई जाएंगी और सभी यात्रियों को इन्हें मानना होगा.’

वापस यात्रा से जुड़ी अन्य शर्तें

भारतीय गृह मंत्रालय के अनुसार इन यात्राओं के संबंध में एक मानक संचालन प्रोटोकॉल तैयार किया गया है.

इसके मुताबिक़ ‘उड़ान भरने से पहले हर यात्री की मेडिकल स्क्रीनिंग की जाएगी. केवल असिम्प्टोमैटिक यानी बिना किसी लक्षण वाले यात्रियों को ही यात्रा की अनुमति होगी.

यात्रा के दौरान इन सभी यात्रियों को स्वास्थ्य मंत्रालय और नागरिक उड्डयन मंत्रालय द्वारा जारी किए गए सभी प्रोटोकॉल फ़ॉलो करने होंगे.’

गृह मंत्रालय ने कहा है कि ‘गंतव्य पर पहुँच कर सभी को आरोग्य सेतु ऐप पर रजिस्टर करना होगा. सभी की मेडिकल जाँच की जाएगी. जाँच के बाद संबंधित राज्य सरकार द्वारा उन्हें अस्पताल में या संस्थागत क्वारंटीन में 14 दिन के लिए भुगतान के आधार पर रखा जाएगा. 14 दिन के बाद इन लोगों का दोबारा कोविड-19 टेस्ट किया जाएगा और सरकारी हेल्थ प्रोटोकॉल के अनुसार आगे की कार्यवाही की जाएगी.’

कई देशों से भारतीयों की वापसी

पंजाब के विशेष मुख्य सचिव केबीएस सिद्धू ने भारत सरकार का एक कथित फ़्लाइट प्लान ट्वीट किया है जिसके अनुसार भारत सरकार 7 मई से 13 मई के बीच 12 देशों में 64 फ़्लाइटें भेजकर क़रीब 15,000 भारतीयों को वापस लाने की तैयारी कर रही है.

केबीएस सिद्धू ने ट्वीट किया है, “भारत ने विदेशों में फंसे भारतीयों को वापस लाने का काम शुरू कर किया. रोज़ औसतन दो हज़ार लोगों को वापस लाया जाएगा. 7 मई को एक फ़्लाइट संयुक्त अरब अमीरात से पंजाब भी आएगी.”

केबीएस सिद्धू द्वारा शेयर किये गए प्लान के अनुसार पहले चरण में संयुक्त अरब अमीरात, मलेशिया, बांग्लादेश, सिंगापुर, ओमान, कुवैत, सऊदी अरब, अमरीका, बहरीन समेत 12 देशों से केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, दिल्ली, तेलंगाना, गुजरात, पंजाब, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के लिए फ़्लाइटें आएँगी.

इस बीच मालदीव में स्थित भारतीय उच्चायोग ने ट्वीट कर जानकारी दी है कि ‘मालदीव में फँसे भारतीयों को लेकर भारतीय नौसेना का जहाज़ 8 मई को केरल के लिए निकलेगा, पहले चरण में 700 लोग भारत लौट सकेंगे, और नौकरी खो चुके प्रवासी श्रमिकों, फँसे हुए यात्रियों, गर्भवती महिलाओं और बीमार लोगों को जहाज़ पर पहले जगह दी जाएगी.’

खाड़ी देशों में बड़ा संकट

भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुसार लगभग सवा करोड़ एनआरआई यानी अनिवासी भारतीय हैं जो 200 से ज़्यादा देशों में फैले हैं. ये वो लोग हैं जिनके पास भारतीय पासपोर्ट है, लेकिन ये आमतौर पर देश के बाहर रहते हैं.

इन सवा करोड़ लोगों में से क़रीब 87 लाख लोग ऐसे हैं जो खाड़ी अरब क्षेत्र में रहते हैं, वहाँ श्रम करते हैं और अपने काम-धंधे करते हैं.

भारत के लगभग 34 लाख लोग अकेले संयुक्त अरब अमीरात में हैं. क़रीब 26 लाख लोग सऊदी अरब में मौजूद हैं.

इनके अलावा क़ुवैत, ओमान, क़तर और बहरीन को मिलाकर क़रीब 29 लाख एनआरआई हैं जो इन देशों में फैले हैं.

जानकारों की मानें तो खाड़ी देशों में रह रहे ये एनआरआई अपनी कमाई से भारत को क़रीब 50 बिलियन डॉलर भेजते हैं. लेकिन खाड़ी देशों में तेल उद्योग चौपट होने की वजह से लोगों की नौकरियाँ जाने की ख़बरें लगातार आ रही हैं.

सोशल मीडिया पर अरबी भाषा के दैनिक अख़बार ‘अशरक़ अल-अवसात’ में दावा किया गया है कि सऊदी अरब की सरकार प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों को 40 प्रतिशत तक वेतन काटने की अनुमति देने के लिए तैयार हो गई है.

अख़बार ने एक सरकारी आदेश के हवाले से लिखा है कि सऊदी अरब का मानव संसाधन मंत्रालय देश के श्रमिक क़ानूनों में बदलाव के लिए राज़ी हो गया है.

इस बदलाव के बाद प्राइवेट सेक्टर की कंपनियाँ छह महीने तक 40 प्रतिशत तक वेतन काट सकती हैं और आर्थिक परेशानी बढ़ने पर अपने कर्मचारियों का कॉन्ट्रैक्ट रद्द भी कर सकती हैं.