अयोध्या विवाद के बाद अब सुप्रीम कोर्ट में काशी-मथुरा विवा’द पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट में काशी-मथुरा विवा’द पर याचिका दायर की गई है। इस याचिका में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को चुनौती दी गई है।
हिंदी पुजारियों के संगठन विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। याचिका में काशी व मथुरा विवा’द को लेकर कानूनी का’र्रवाई को फिर से शुरू करने की मांग की गई है। करीब 29 साल बाद एक्ट को रद्द करने की मांग की गई है।
आपको बता दें कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 एक्ट में कहा गया है कि 15 अगस्त, 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस संप्र’दाय का था वो आज, और भविष्य में, भी उसी का रहेगा।

हालांकि अयोध्या विवा’द को इससे बाहर रखा गया क्योंकि उस पर कानूनी विवा’द पहले का चल रहा था। याचिका में कहा गया है कि इस एक्ट को कभी चुनौती नहीं दी गई और ना ही किसी कोर्ट ने न्यायिक तरीके से इस पर विचार किया जाए।
गौरतलब है कि अयोध्या फैसले में भी संविधान पीठ ने इस पर सिर्फ टिप्पणी की थी। 9 नवंबर 2019 में राम मंदिर पर फैसला देते समय सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने देश के तमाम विवा’दित धर्मस्थलों पर भी अपना रुख स्पष्ट कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच अपने 1,045 पेज के फैसले में 11 जुलाई, 1991 को लागू हुए प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट, 1991 का जिक्र किया है। इस मतलब ये हुआ कि काशी और मथुरा में जो मौजूदा स्थिति है वही बनी रहेगी। उनको लेकर किसी तरह का दावा नहीं किया जा सकेगा।
पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991. एक अधिनियम जो 15 अगस्त 1947 तक अस्तित्व में आए हुए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को एक आस्था से दूसरे धर्म में परिवर्तित करने और किसी स्मारक के धार्मिक आधार पर रखरखाव पर रोक लगाता है। यह केंद्रीय कानून 18 सितंबर, 1991 को पारित किया गया था।